जब से कलम से सियाही का नाता छूटा
तुझसे मिलने का हर एक सपना छूटा
साल दर साल बस बहाने तलाशे
हर एक बहाने का फ़साना झूठा
तीज निकली त्योहार निकले
और निकले ये दो साल
इन् सालों के पल निकले
हर पल ऐसे निकले जैसे हों दो साल
बहुत देखा बहुत सहा
बहुत सुना बहुत कहा
लगा तेरी ज़रुरत बस मुझको है
मेरी नम आँखों से फरक बस तुझको है
इस दुनिया को क्या मतलब मुझसे
इस दुनिया को क्या मतलब तुझसे
कब मिलेगी कहाँ मिलेगी
बस यही कहते बीते ये दो साल